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नीतियाँ

राज्य के मत्स्य संसाधन



विभाग द्वारा क्रियांनवित नीतिगत कार्यक्रम



राज्य में मत्स्य पालन के संसाधनों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है I


  1. जलाशय में मत्स्य पालन के संसाधन I


  2. नदी/नालों में मत्स्य पालन के संसाधन I


  3. ट्राऊट मत्स्य पालन I


  4. तालाबों/चैक डैमों में मछली पालन I




जलाशय में मत्स्य पालन के संसाधन :-


हिमाचल प्रदेश में तीन मानव निर्मित जलाशय,गोबिंदसागर, पौंग तथा चमेरा हैं जिनका जलक्षेत्र लगभग 26000 हेक्टेयर में फैला हुआ है I हाल ही में रंजीत सागर भी इस कड़ी में शामिल हो गया है | इन जलाशयों से व्यवसायिक तौर पर मछली का दोहन किया जाता है | इन जलाशयों से सतत मछली उत्पादन हेतू निम्नलिखित योजनाबद्ध कदम उठाए जा रहे हैं:-


  1. प्रत्येक मछुआरे को सहकारिता के तहत संगठित किया गया | सहकारी समिती के सदस्यों को ही मछली पकड़ने का लाइसेंस दिया जाता है I मछली विपणन के लिए खुली बोली द्वारा वार्षिक ठेका किया जाता है I इस प्रबंधन से मछुआरों को अपने गिल-जालों तथा मछली पकड़ने के उपकरणों की मुरम्मत करने के लिए काफी समय बच जाता है | परिणाम स्वरूप मछुआरों की मछली पकड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है और साथ ही मछली के उत्पादन में भी बढौतरी होती है |


  2. मत्स्य पालन के क्षेत्र में जलीय प्रबंधन और कृत्रिम आहार की प्रमुख भूमिका होती है | यद्यपि इनका उपयोग जलाशय की विशाल जल राशियों में नहीं किया जा सकता I जलाशयों से पकड़ी जाने वाली मछली के उत्पादन में वृद्धि हेतू मछली की जनसंख्या का कुशलता से प्रबंधन किया जाता है | इसको प्राप्त करने के लिए जलाशय में उत्तम किस्म का मछली बीज जैसे :- भारतीय मेजर कार्प , मिरर कार्प, विदेशी कार्प मछली आदि को चरणबद्ध ढंग से काफी मात्रा में तथा एक उपयुक्त आकार के बाद संग्रहित किया जाता है | पौंग जलाश्य में मछली खाने वाले प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति के मध्यनजर इस जलाश्य में 30 से 40 मि०मि० व उसके बड़े आकार का मछली बीज ही संग्रहित किया जाता है ताकि संग्रहित मछली बीज इन मछली भक्षी पक्षियों के प्रहार से बचने में कामयाव हो सके |


  3. जलाश्यों में प्रथम जून से 31 जुलाई प्रत्येक वर्ष दो माह के लिये मछली पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाता है ताकि मछलियां मुक्त विचरण करते हुये प्रजनन कर सकें | इस प्रावधान द्वारा मछलियाँ अपने वंश की वृद्धि करते हुये मछली बीज का स्वत: ही संग्रहण कर देती हैं | जिससे सतत मछली उत्पादन में मदद मिलती है |


  4. हिमाचल प्रदेश मत्स्य अधिनियम 1976, व नियम 1979 में गिल जाल की आँख के आकार का विशेष प्रकार से निर्धारण किया गया है | ऐसे जाल जिनकी आँख का आकार (मैश साईज) गांठ से गांठ 5 सै०मी० से कम हो उनके प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध है ताकि छोटी मछली के शिकार को रोका जा सके |


  5. यहाँ तक की इन नियमों में व्यवसायिक तौर पर महत्वपूर्ण मछलियों के कम से कम आकार का भी वर्णन किया गया है जिसके नीचे के आकार की मछली पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध है | इन मछलियों के आकार का निर्धारण उनको वयस्क होने के साथ सबंधित है ताकि प्रत्येक मछली को जीवन में कम से कम एक बार प्रजनन करने का मौका मिल सके |


  6. दो माह के मछली पकड़ने के प्रतिबंध के दौरान गिल जाल से मछली पकड़ने के अपराध को गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है जिसमें दोषी को दो वर्ष की कैद या 3000/- रूपये जुर्माना या दोनों सजाओं को एक साथ देने का प्रावधान मत्स्य नियमों में किया गया है|


  7. सभी मछुआरों को प्रीमियम मुक्त बीमा कवर प्रदान किया गया है | जिसमें मृत्यु होने की दशा में 1 लाख रूपये उसके उत्तराधिकारी को व स्थाई अपंगता की दशा में मछुआरे को 50 हजार रूपये देने का प्रावधान रखा गया है | इससे मछुआरे के परिवार को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई है | क्योंकि मछली पकड़ने का व्यवसाय रात्रीकालीन प्रवृति का है जिसमें जोखिम का अंदेशा बना रहता है |


  8. मछली बंद सीजन के दौरान मछुआरों की घरेलू आर्थिकि को डांवाडोल होने से बचाने के लिए मछुआरा अंशदायी सहायता योजना चलाई गई है | इसके अंतर्गत सम्बन्धित मछुआरा 10 माह तक 40 रू० प्रतिमाह का अंशदान देता है | इस तरह एकत्रित 400 रू० की राशि में राज्य व केन्द्र सरकार भी 400-400 रू० का योगदान देती है | कुल एकत्रित 1200 रू० की राशी लाभान्वित मछुआरे को दो किस्तों में अदा की जाती है | मछली प्रतिबंध अवधि में मछली पकड़ने के दोषी मछुआरे की सहायता राशी को जब्त करने का भी प्रावधान नियमों में किया गया है |


  9. जलाशय में भारी वर्षा तूफान और खराब मौसम के दौरान मछली पकड़ना काफी जोखिम भरा है | मछली पकड़ने के उपकरण के नुक्सान की भरपाई प्रत्येक यूनिट के निर्धारित कीमत के 33% तक की जाती है| जोकि गिल नेट के लिए 1000/- रू०, तम्बू के लिए 5000 रू० और किश्ती के लिए 10,000 रू० तय की गई है | इसके लिए कुल 40 रू० क्रमश: राज्य सरकार तथा मछुआरे 50:50 के अनुपात में अदा करते हैं |


  10. गरीब मछुआरों को गिल जाल व किश्ती इत्यादि क्रय करने के लिए अनुदान दिया जाता है | इससे उनकी आर्थिकी मजबूत तो होती ही है साथ ही बेरोजगार युवकों को भी इस व्यवसाय से जोड़ने के अवसर प्रदान किए जाते हैं | उपरोक्त प्रबंधन द्वारा राज्य के जलाश्य -मत्स्यकी के विकास व विपणन के क्षेत्र में पूरे भारत वर्ष में एक अचम्भे के रूप में उभर कर आये हैं| जहां गोबिंदसागरजलाश्य प्रति हैक्टेयर/प्रतिवर्ष श्रेष्ठ मछली उत्पादन (120 कि०ग्राम/हैक्टेयर ) के लिए जाना जाता है वहीं पौंग जलाश्य की मछलियों को प्रति कि०ग्राम उच्चतम दर से मंडी भाव प्राप्त हो रहा है जो वर्तमान में 165 रू०/कि०ग्राम तक दर्ज किया गया है |






नदी नालों में मत्स्य पालन:-


वर्तमान समय में प्रदेश के नदी नालों से लगभग 5200 मछुआरे मछली पकड़ने के व्यवसाय से अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं | इन संसाधनों से मछली उत्पादन में सतत वृद्धि हेतू इनमें प्रतिवर्ष भारतीय मेजर कार्प मछलियों व ब्राउन ट्राउट मछली का बीज काफी मात्रा में हर वर्ष संग्रहित किया जा रहा है | प्रदेश की विभिन्न नदियों के जलों में महाशीर मछली के प्राचीन वैभव को लौटाने के लिए जिला मंडी के मछियाल नामक स्थान पर एक महाशीर मछली फार्म का निर्माण किया जा रहा है | जो निर्माण के अंतिम चरण में है | नदिय मछुआरों की मछली पकड़ने की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए विभाग ने एक योजना बनाई है | जिसके अंतर्गत प्रत्येक मछुआरे को 1000/-रू० मूल्य का कास्ट नैट अनुदान पर प्रदान किया जाएगा | जलाश्य मछुआरों के आधार पर ही नदिय मछुआरों को प्रीमियम मुक्त बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है |



ट्राऊट मत्स्य पालन :-


हिमाचल प्रदेश उप उष्ण व समशीतोषण कटिबन्ध में पडता है | ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नदियों के जलों में ब्राउन ट्राउट मछली के पालन की व्यापक सम्भावनायें हैं | ट्राउट मछली आखेट के लिए बहुत ही उपयुक्त है | इसके संरक्षण हेतू प्रकृति प्रेमियों का ध्यान आकर्षित करने के लिये मत्स्य आखेट प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है | इसके द्वारा प्रदेश के आर्थिक पर्यटन को बढ़ावा मिलने की भी व्यापक सम्भावनायें हैं | इसके अतिरिक्त इन ट्राउट नदियों के जल, ट्राउट मछली के व्यवसायिक उत्पादन हेतू भी प्रयोग में लाये जा रहे हैं | इसे बढ़ावा देने हेतू ट्राउट मछली की एक इकाई के निर्माण हेतू 10 हजार रूपये व प्रथम वर्षीय आदान के क्रय हेतू 12 हजार रू० प्रति इकाई की दर से अनुदान देने की योजना विभाग द्वारा चलाई जा रही है|



तालाबों व चैकडैमों में मत्स्य पालन :-


मत्स्य पालन का यह क्षेत्र अभी किशोरावस्था में ही है और इसके विकास में कई बाधायें सामने आ रही हैं | जिनमें उत्तम श्रेणी के मछली बीज की कमी, मिट्टी से अधिक जल रिसाव; पहाड़ी प्रदेश होने के नाते तालाब निर्माण की अधिक लागत आना व पानी आपूर्ती के लिये वर्षा जल निर्धारित प्रणाली पर निर्भरता आदि प्रमुख कारण हैं | परन्तु प्रदेश की कुछ घाटियों के सीमित क्षेत्रों में तालाबों व चैक डैमों में मत्स्य पालन को अपनाया जा रहा है जो ग्रामीण आर्थिकि में अपना अंशदान दे रहा है | मत्स्य किसान अब मछली पालन के साथ-साथ एकीकृत सूअर पालन, मुर्गी पालन व पशुपालन आदि को भी अपना रहे हैं | जिससे उनकी आमदनी में बढौतरी हो रही है | मछली पालन के इस क्षेत्र को विकसित करने व वितीय सहायता उपलब्ध करवाने हेतू दो मत्स्य किसान विकास अभिकरणों की स्थापना प्रदेश में की गई है |


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Visitor No.: 08954626   Last Updated: 13 Jan 2016