प्राथमिकता और थ्रस्ट क्षेत्र
भविष्य के लिए हिमाचल प्रदेश में कृषि विकास हेतु महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान
1. परम्परागत फसलों का वाणिज्यिक फसलों में क्षेत्रीय विविधीकरण जहां सिंचाई सम्भाव्यता सृजित की गई है |
2. बरानी क्षेत्रो का विकास जल विभाग दृष्टिकोण के माध्यम से बड़े पैमाने पर प्राकृतिक स्त्रोतों का कुशल प्रयोग करना | आर.आई.डी.एफ. के अंतर्गत बढ़ता वित -पोषण का प्रबंध कराना |
3. वर्षा जल-संचयन एक दूसरा क्षेत्र है जो कि फसलों को न केवल जीवन रक्षक सिंचाई प्रदान करता हैबल्कि कटाव को रोकने और भू-जल को रिचार्ज करेगा |विभाग भारत सरकार द्वारा छोटे सिंचाई टेंकों / शैल कुओं और पम्पिंग सेट के लिए वितीय सहायता लेना चाहता है |
4. अधिक पैदावार देने वाली संकरित से मक्के की उत्पादकता में वृद्धि |
5. परिशुद्ध खेती के तरीकों को अपनाना (पोली भवन और सूक्ष्म सिंचाई )
6. कार्बनिक खेती थ्रस्ट क्षेत्र होगा |
7. पोस्ट (पद) कटाई प्रबंध और कुशल विपणन प्रणाली |
8. आने वाले वर्षो में विशेष संदर्भ में पहाड़ी कृषि में कृषि मशीनीकरण किया जाएगा |श्रम लागत को ध्यान में रखकर यह आवश्यक है कि खेती की लागत कम हो | विभाग ने पहले से ही एक तकनीकी कार्यकर्ता समूह बनाया है जो नई मशीनों व उपकरणों की पहचान करके राज्य को अवगत कराएगा |
9. एक सशक्त अनुसंधान विस्तार जो समस्या उन्मुखी अनुसंधान कार्यक्रम दर्शाए |
समस्या क्षेत्रो में अनुसंधान परियोजनाओं की पहचान की जानी चाहिए और निधियन किया जाना चाहिए |
10. सार्वजनिक व निजी साझेदारी के माध्यम से विस्तार सुधार |
11. खाद्य प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन करना |
12. उत्पादकता और गुणवता में वृद्धि |
13. कृषि के क्षेत्र में जैव -प्रौद्योगकी के अनुप्रोग का पता लगाया जायेगा |
14. मिट्टी के परीक्षण तथा मिट्टी आरोग्य कार्ड |